केंद्र सरकार ने अपना 28 नवंबर वाला वह आदेश वापस ले लिया है, जिसमें सभी स्मार्टफोन्स में संचार साथी ऐप को अनिवार्य रूप से प्री-इंस्टॉल करने के निर्देश दिए गए थे। इस निर्णय को लेकर देशभर में प्राइवेसी और व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर विवाद खड़ा हो गया था। दूरसंचार विभाग (DoT) ने कंपनियों को 90 दिनों में इस नियम को लागू करने और 120 दिनों के भीतर रिपोर्ट देने को कहा था।
लेकिन अब सरकार ने स्पष्ट किया है कि संचार साथी ऐप को ज़बरदस्ती फोन में डालने की जरूरत नहीं है, क्योंकि लोग स्वेच्छा से ही इस ऐप को तेजी से अपना रहे हैं। पिछले 24 घंटे में लाखों लोगों ने इसे डाउनलोड किया है, जिससे सरकार का मानना है कि अनिवार्यता की आवश्यकता ही नहीं है।
क्या था आदेश?
28 नवंबर को सरकार ने कहा था कि भारत में बिकने वाले सभी स्मार्टफोन्स में संचार साथी ऐप पहले से मौजूद होगा और यूज़र उसे हटाने का विकल्प नहीं पाएंगे। इस कदम का उद्देश्य साइबर फ्रॉड रोकना बताया गया था।
विवाद क्यों बढ़ा?
स्मार्टफोन कंपनियों ने इसे अपनी नीतियों के खिलाफ बताया।
यूज़र्स ने इसे प्राइवेसी का उल्लंघन माना।
बढ़ते विरोध के बीच सरकार ने कहा कि ऐप को डिलीट किया जा सकेगा, यानी यह ऑप्शनल होगा।
Apple ने किया सीधा इंकार
Apple ने साफ कहा कि वह किसी भी फोन में सरकार द्वारा थोपे गए ऐप प्री-इंस्टॉल नहीं करेगा, क्योंकि यह उनकी सख्त पॉलिसी और यूज़र प्राइवेसी गाइडलाइन के खिलाफ है। संचार साथी से डेटा सुरक्षा को लेकर भी कंपनी ने चिंता जताई।
अब सरकार का नया फैसला
सरकार ने अपना आदेश पूरी तरह वापस ले लिया है। यानी अब कोई भी स्मार्टफोन कंपनी संचार साथी ऐप को प्री-लोड करने के लिए बाध्य नहीं होगी।
सरकार ने बताया कि—
अब तक 1.4 करोड़ लोग संचार साथी डाउनलोड कर चुके हैं।
हर दिन लगभग 2,000 साइबर फ्रॉड केस इसी ऐप से रिपोर्ट होते हैं।
पिछले 24 घंटों में 6 लाख नए यूज़र जुड़े, जो सामान्य दिनों की तुलना में 10 गुना ज्यादा है।
इन आंकड़ों को देखते हुए सरकार ने कहा कि ऐप को जबरदस्ती लागू करने की जरूरत नहीं है, क्योंकि लोग इसे खुद ही अपना रहे हैं।





