छत्तीसगढ़ में सरकारी मेडिकल कॉलेजों में हिंदी माध्यम से एमबीबीएस शुरू करने की योजना लगातार दूसरे साल भी सफल नहीं हो पाई है। 22 सितंबर से नया सत्र शुरू हो चुका है, लेकिन किसी भी छात्र ने हिंदी माध्यम में प्रवेश के लिए आवेदन नहीं किया। यही स्थिति पिछले वर्ष भी रही थी—तभी भी कुछ गिने–चुने छात्रों ने रुचि दिखाई, पर उनकी संख्या इतनी कम थी कि अलग से क्लास शुरू नहीं हो सकीं। वार्षिक परीक्षा में भी किसी ने हिंदी माध्यम का विकल्प नहीं चुना।
सरकारी पहल, लेकिन छात्रों का रुचि अभाव
हिंदी दिवस 2023 पर राज्य सरकार ने 10 सरकारी मेडिकल कॉलेजों में हिंदी माध्यम MBBS शुरू करने की घोषणा की थी। परंतु यह केवल कागजों तक सीमित रह गई। कॉलेजों में पढ़ाई अब भी अंग्रेजी माध्यम में ही हो रही है। लाइब्रेरी में कुछ हिंदी मेडिकल किताबें जरूर रखी गई हैं, लेकिन छात्र उन्हें उपयोग में नहीं ला रहे। कारण यह है कि फैकल्टी पहले से ही कई विषय छात्रों की सुविधा के लिए हिंदी में समझा देती है, जबकि परीक्षा का माध्यम अंग्रेजी ही निर्धारित है।
किताबें उपलब्ध, दिशा–निर्देश नहीं
पिछले वर्ष स्वास्थ्य मंत्री ने दावा किया था कि हिंदी माध्यम MBBS के लिए पर्याप्त पुस्तकें उपलब्ध हैं, लेकिन छात्रों की अरुचि के कारण व्यवस्था लागू नहीं हो सकी। वहीं दूसरी ओर विभाग की सुस्ती भी सामने आई—चिकित्सा शिक्षा विभाग किसी भी कॉलेज को स्पष्ट दिशा-निर्देश भेजने में विफल रहा।
काउंसलिंग पूरी, सभी सीटें भर चुकी— फिर भी हिंदी माध्यम शून्य
सरकारी मेडिकल कॉलेजों की सीटें तीन चरण की काउंसलिंग में पूरी तरह भर चुकी हैं, लेकिन एक भी विद्यार्थी ने हिंदी माध्यम नहीं चुना। विशेषज्ञों का मानना है कि ऑल इंडिया और सेंट्रल पूल से आने वाले विद्यार्थी हिंदी माध्यम नहीं चुनते, वहीं राज्य के छात्र भी इसमें रुचि नहीं दिखा रहे।
देशभर में स्थिति
यूपी, मध्यप्रदेश, उत्तराखंड और बिहार भी हिंदी में MBBS की दिशा में कोशिश कर रहे हैं, जबकि जबलपुर में पहला हिंदी माध्यम मेडिकल कॉलेज प्रस्तावित है। हालांकि यहां भी वास्तविक पढ़ाई का बड़ा हिस्सा अंग्रेजी पर ही आधारित रहेगा, क्योंकि अधिकांश किताबें अंग्रेजी शब्दावली पर निर्भर हैं।





