र साल खतरे में 1.30 लाख भारतीयों की जान......जिंदगी बचाने के लिए चाहिए 206 लाख करोड़, विश्व बैंक ने दी सीधी चेतावनी

भारतीय शहरों में रहने वाले 1.30 लाख से ज्यादा लोगों की जान खतरे में है और इनकी जिंदगी बचाने के लिए करीब 206 लाख करोड़ रुपये चाहिए होंगे. यह खुलासा विश्व बैंक ने अपनी रिपोर्ट में किया है. विश्व बैंक ने बताया है कि भारतीय शहर बाढ़, बढ़ते तापमान और अन्य जलवायु संबंधी जोखिमों के प्रति लगातार संवेदनशील होते जा रहे हैं. साल 2050 तक मजबूत और कम कार्बन उत्सर्जन वाले बुनियादी ढांचे के निर्माण के लिए 2,400 अरब डॉलर (करीब 206 लाख करोड़ रुपये) से अधिक के निवेश की जरूरी होगी.
आवास एवं शहरी मामलों के मंत्रालय के साथ साझेदारी में तैयार की गई इस रिपोर्ट में कहा गया है कि वर्षा से संबंधित बाढ़ से होने वाला सालाना आर्थिक नुकसान वर्तमान में 4 अरब डॉलर (करीब 35 हजार करोड़ रुपये) आंका गया है. रिपोर्ट में साफ कहा गया है कि अगर समय पर कोई सुधारात्मक कदम नहीं उठाये गए, तो साल 2030 तक यह नुकसान बढ़कर पांच अरब डॉलर (करीब 43 हजार करोड़ रुपये) और साल 2070 तक 30 अरब डॉलर (करीब 2.5 लाख करोड़ रुपये) सालाना हो सकता है.
रिपोर्ट के अनुसार, शहरों का ज्यादातर विस्तार बाढ़ प्रभावित और अत्यधिक गर्मी से प्रभावित संवेदनशील क्षेत्रों में हो रहा है. रिपोर्ट में दिल्ली, चेन्नई, सूरत और लखनऊ को खासकर संवेदनशील क्षेत्रों में बस्तियों के विस्तार के कारण अधिक तापमान के प्रभावों और बाढ़ के जोखिमों के प्रति सबसे अधिक संवेदनशील शहरों के रूप में चिह्नित किया गया है. दिल्ली में बढ़ते तापमान और शहरी बाढ़ से जुड़े जोखिम हैं. यहां गर्मी का दबाव भी बढ़ने की आशंका है. साल 1983 और साल 2016 के बीच भारत के 10 सबसे बड़े शहरों में खतरनाक स्तर के तापमान के संपर्क में 71 फीसदी की वृद्धि हुई और यह सालाना 4.3 अरब से बढ़कर 10.1 अरब व्यक्ति-घंटे हो गया. रिपोर्ट में गर्मी से लोगों की मृत्यु पर चिंता जताई गई है.
विश्व बैंक की रिपोर्ट में कहा गया है कि अगर उत्सर्जन मौजूदा स्तर पर जारी रहा तो साल 2050 तक गर्मी से संबंधित मौतों की सालाना संख्या 1,44,000 से बढ़कर 3,28,000 से ज्यादा हो सकती है. अधिक तापमान से दबाव की स्थिति के कारण भारत के प्रमुख शहरों में लगभग 20 फीसदी कार्य घंटे बर्बाद हो सकते हैं. केवल तापमान में कमी लाने के उपायों से ही भारत के सकल घरेलू उत्पाद में 0.4 फीसदी तक बढ़ोतरी हो सकती है और साल 2050 तक सालाना 1,30,000 लोगों की जान बचाई जा सकती है.