उपराष्ट्रपति कार्यालय ने 15 जुलाई को राज्यसभा में विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे का 44 सेकंड का एक वीडियो पोस्ट किया, जिसमें वे वी-पी एन्क्लेव में
जगदीप धनखड़ से मुलाकात करते नजर आ रहे हैं. पिछले रविवार यानी संसद के मानसून सत्र शुरू होने से एक दिन पहले जगदीप धनखड़ ने आम आदमी पार्टी (AAP) के नेता अरविंद केजरीवाल से मुलाकात की और इस मुलाकात की तस्वीरें पोस्ट कीं. अरविंद केजरीवाल सांसद नहीं हैं.
ऐसी मुलाकातें आधिकारिक शिष्टाचार का हिस्सा हैं, मगर वह सरकार एक धड़े की नजरों से बच नहीं पाए, जहां यह चर्चा भी सुनाई दी कि जगदीप धनखड़ ने विपक्षी नेताओं के साथ ऐसी बैठकों में नरेंद्र मोदी सरकार की आलोचना की थी. यह 2024 से एक यूटर्न है, जब विपक्षी नेताओं ने उनके खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव पेश किया था और उन पर पक्षपात का आरोप लगाते हुए राज्यसभा के सभापति पद से हटाने की धमकी दी थी. जगदीप धनखड़ को मार्च में हृदय संबंधी समस्याओं के कारण एम्स में भर्ती कराया गया था.
विपक्ष के साथ धनखड़ की जुगलबंदी?
लेकिन ऐसा लगता है कि मार्च के बाद जगदीप धनखड़ ने विपक्ष के साथ संबंध बनाने की कोशिश की ताकि यह साबित किया जा सके कि वह राज्यसभा के सभापति के रूप में पक्षपाती नहीं हैं. उन्होंने अक्सर मल्लिकार्जुन खरगे के साथ-साथ कांग्रेस के जयराम रमेश और कांग्रेस राज्यसभा सांसद प्रमोद तिवारी से मुलाकात की. रमेश और प्रमोद तिवारी अब इस बात पर सवाल उठा रहे हैं कि जगदीप धनखड़ ने अचानक इस्तीफा क्यों दिया और सरकार से आग्रह किया कि वह उन्हें इस्तीफा वापस लेने के लिए मनाए. पिछले दिसंबर की तुलना में यह एक बड़ा बदलाव है.
धनखड़ अपनी सीमा से बाहर थे?
जगदीप धनखड़ आरएसएस यानी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सदस्य रहे हैं जब तक कि उन्हें 2019 में मोदी सरकार द्वारा पश्चिम बंगाल का राज्यपाल नहीं चुना गया, जहां उन्होंने ममता बनर्जी सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था. साल 2022 में जगदीप धनखड़ को भारत के उपराष्ट्रपति के रूप में पदोन्नत किया गया. मगर हाल ही में सरकार को लगा कि वह उन मुद्दों पर बोलकर अपनी सीमा से बाहर जा रहे हैं, जिन पर उनका अधिकार नहीं था. इसका प्रमुख उदाहरण जस्टिस यशवंत वर्मा मामले के प्रकाश में आने के बाद NJAC जैसी संस्था को बहाल करने के लिए उनका ‘अभियान’ था. उन्होंने इस मुद्दे पर राज्यसभा में सदन के नेताओं से भी मुलाकात की.
सरकार से अलग धनखड़ की राय?
लेकिन सरकार स्पष्ट रूप से एनजेएसी जैसे किसी कदम से न्यायपालिका को नाराज करने के मूड में नहीं थी. गृह मंत्री अमित शाह ने हाल ही में सीएनएन-न्यूज18 के एक कार्यक्रम में साफ तौर पर कहा कि सरकार का ऐसा कोई प्रस्ताव नहीं है. लेकिन जगदीप धनखड़ के इस मुद्दे पर लगातार सार्वजनिक बयानों से यह धारणा बनी कि सरकार ही उन्हें ऐसा कहने के लिए प्रेरित कर रही थी, जो कि सच नहीं था. जगदीप धनखड़ बार-बार इस बात की भी आलोचना कर रहे थे कि जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ अब तक कोई एफआईआर क्यों नहीं दर्ज की गई. यह उनके उपराष्ट्रपति पद के अधिकार क्षेत्र से कहीं आगे जा रहा था.
किससे और क्या बहस हुई थी?
बताया जा रहा है कि धनखड़ के इस्तीफे की आखिरी वजह सोमवार शाम एक सीनियर मंत्री के साथ उनकी टेलीफोन पर हुई बहस थी, जिसमें उनसे सवाल किया गया कि उन्होंने जस्टिस वर्मा के खिलाफ 65 से अधिक विपक्षी सांसदों की ओर से पेश किए गए महाभियोग प्रस्ताव को स्वीकार क्यों किया? जबकि सरकार इस कदम से बिल्कुल अनजान थी. इसके जवाब में जगदीप धनखड़ ने राज्यसभा के सभापति के रूप में अपने संवैधानिक अधिकारों का हवाला देकर नोटिस स्वीकार करने की बात कही. बाद में सोमवार को भाजपा चीफ जेपी नड्डा और किरण रिजिजि दोनों ही जगदीप धनखड़ द्वारा शाम 4:30 बजे बुलाई गई बैठक में शामिल नहीं हुए. इससे पता चला कि पिछले कुछ महीनों में अविश्वास की बढ़ती स्थिति के बाद मामले बहुत आगे बढ़ गए थे.
अब आगे क्या?
मोदी सरकार अगले उपराष्ट्रपति के रूप में एक वफादार भाजपा नेता को प्राथमिकता देगी क्योंकि वह राज्यसभा में कोई जोखिम नहीं उठाना चाहती, जहां संख्या बल नाज़ुक है. रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, अन्य सीनियर कैबिनेट मंत्रियों में से किसी एक या राज्यसभा के सीनियर भाजपा सांसदों में से किसी एक जैसे कई नाम चर्चा में हैं. अगले उपराष्ट्रपति को पूरे पांच साल का कार्यकाल मिलेगा. 60 दिनों के भीतर नया उपराष्ट्रपति चुनना अनिवार्य है.