संसद का मानसून सत्र शुरू होते ही विपक्षी INDIA अलायंस ने सरकार को घेरने की रणनीति पर चर्चा की

क्यों हो रही परेशानी
इस पूरे भ्रम और असमंजस का सीधा लाभ बीजेपी को मिलता है. वह विपक्ष में मार-काट को भुनाने में जुटी है. बीजेपी को पता है कि INDIA अलायंस का हर नेता कांग्रेस से डरता है क्योंकि कांग्रेस अगर राष्ट्रीय स्तर पर फिर से मजबूत हो गई, तो क्षेत्रीय दलों का स्पेस खत्म हो जाएगा. यही वजह है कि INDIA अलायंस को एकसाथ लेकर चलना ‘तराजू में मेंढक तौलने’ जैसा बन गया है. कोई एक तरफ कूदता है, तो दूसरा दूसरे पलड़े से उतर जाता है. ऊपर से कांग्रेस की दुविधा कि वह लीडरशिप को लेकर कोई समझौता नहीं करना चाहती. कोई नया नेता नहीं देना चाहती, जो इंडिया अलायंस को परेशान करता है.महाराष्ट्र
उद्धव ठाकरे ने INDIA अलायंस की रणनीति पर सीधा सवाल खड़ा किया. उन्होंने कहा, जब लोकसभा चुनाव हुए, तब हमारे पास साझा चुनाव चिह्न नहीं था, पर कैंडिडेट तय किए गए. विधानसभा चुनाव में चिन्ह तय था, पर सीटों और उम्मीदवारों पर कोई स्पष्टता नहीं थी. यह गलती दोबारा नहीं होनी चाहिए, वरना साथ आने का मतलब ही नहीं. इस बयान के बाद यह साफ हो गया कि अंदरखाने जो नाराजगी पल रही थी, वह अब मंच पर आ चुकी है.पश्चिम बंगाल
यूपी में अखिलेश यादव कांग्रेस के साथ गठबंधन तो चाहते हैं, लेकिन सीमित सीटों पर. कांग्रेस के बढ़ते प्रभाव से समाजवादी पार्टी को खतरा महसूस होता है. क्योंकि दोनों का वोट बैंक लगभग एक है.
बिहार में तेजस्वी यादव की आरजेडी ने शुरू से ही कांग्रेस को जूनियर पार्टनर की भूमिका में रखा है, लेकिन अब कांग्रेस यहां भी दखल बढ़ाना चाह रही है. यह तेजस्वी को परेशान करता है.
कांग्रेस खुद भी इस स्थिति से संतुलन नहीं बना पा रही. अगर वह किसी राज्य में गठबंधन के लिए झुकती है, तो दूसरे राज्य में उसी का खामियाजा भुगतना पड़ता है. ममता बनर्जी जैसी नेता कई बार यह इशारा कर चुकी हैं कि उन्हें कांग्रेस पर भरोसा नहीं है.