भारत-पाक‍िस्‍तान सीजफायर पर बार-बार क्रेडिट क्‍यों ले रहे थे ट्रंप? सामने आ गई असली वजह, मुंह छुपाना हुआ मुश्क‍िल

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भारत-पाकिस्तान सीजफायर पर खुद को दादा की तरह पेश कर रहे थे. वो बार-बार दावा करते रहे कि उन्हीं की ट्रेड पॉल‍िसी के चल

May 29, 2025 - 08:00
May 29, 2025 - 08:00
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भारत-पाक‍िस्‍तान सीजफायर पर बार-बार क्रेडिट क्‍यों ले रहे थे ट्रंप? सामने आ गई असली वजह, मुंह छुपाना हुआ मुश्क‍िल
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अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भारत-पाकिस्तान सीजफायर पर खुद को दादा की तरह पेश कर रहे थे. वो बार-बार दावा करते रहे कि उन्हीं की ट्रेड पॉल‍िसी के चलते भारत-पाकिस्तान परमाणु युद्ध के मुहाने से लौटे और सीजफायर पर सहमत हुए. उन्होंने यहां तक कह डाला कि अगर दोनों देश नहीं मानते, तो अमेरिका उनका ट्रेड बंद कर देता. उस वक्त भारत सरकार ने उनके दावे को सिरे से खारिज कर दिया था, लेकिन ट्रंप अपनी ही रट पर कायम रहे. अब पता चला है कि ट्रंप की इस ‘क्रेडिट लेने की रणनीति’ के पीछे एक और ही एजेंडा छुपा था, एक कानूनी चाल. और वो चाल खुद उनके ही देश की अदालत ने पकड़ ली है. अमेरिका की कोर्ट ऑफ इंटरनेशनल ट्रेड ने राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की ओर से लागू किए गए एकतरफा और व्यापक टैरिफ यानी व्यापारिक शुल्क पर रोक लगा दी है. कोर्ट का कहना है कि व्हाइट हाउस ने आपातकालीन कानून का गलत इस्तेमाल करते हुए लगभग हर देश पर टैरिफ थोप दिए थे, जो कि संविधान की भावना के खिलाफ है. कैसी-कैसी दलील ट्रंप प्रशासन इस केस में अदालत को यह समझाने की कोशिश करता रहा कि उनकी ट्रेड पॉलिसी ने दुनिया को एक बड़ा नुकसान होने से बचा लिया. उनका तर्क था कि भारत और पाकिस्तान के बीच सीजफायर उन्हीं की दबाव वाली नीति का नतीजा था. यहां तक कहा गया कि अगर अमेरिका ने ट्रेड का दबाव न बनाया होता, तो शायद परमाणु युद्ध हो चुका होता. असली वजह अब यह स्पष्ट हो गया है कि ट्रंप भारत-पाकिस्तान सीजफायर का बार-बार क्रेडिट इसलिए ले रहे थे ताकि इस कोर्ट केस में अपनी ट्रेड नीतियों को सफल और वैध साबित किया जा सके. यानी एक अंतरराष्ट्रीय शांति प्रक्रिया को उन्होंने अपनी घरेलू कानूनी लड़ाई में हथियार बना लिया. लेकिन जैसे ही कोर्ट ने उनकी दलीलें खारिज कीं और टैरिफ पर रोक लगा दी, ट्रंप के दावों की बुनियाद ही हिल गई. अब उनके लिए यह बात छुपाना मुश्किल हो गया है कि भारत और पाकिस्तान के बीच शांति की जो कोशिशें हुई थीं, उनमें अमेरिका की भूमिका उतनी निर्णायक नहीं थी, जितनी वे बताते रहे.
Bhaskardoot Digital Desk www.bhaskardoot.com