भगवान विष्णु और श्रीलक्ष्मी की महाकृपा का दिन है आज अक्षय तृतीया

अक्षय तृतीया,जिसे आखा तीज भी कहा जाता है, हिन्दूधर्म में अत्यंत पवित्र और शुभ दिन माना जाता है। वैष्णव परंपरा में इसका विशेष महत्व है, क्योंकि यह

Apr 29, 2025 - 21:48
Apr 29, 2025 - 21:57
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भगवान विष्णु और श्रीलक्ष्मी की महाकृपा का दिन है आज अक्षय तृतीया
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अक्षय तृतीया,जिसे आखा तीज भी कहा जाता है, हिन्दूधर्म में अत्यंत पवित्र और शुभ दिन माना जाता है। वैष्णव परंपरा में इसका विशेष महत्व है, क्योंकि यह दिन भगवान विष्णु और उनके अवतारों की उपासना के लिए समर्पित है। यह वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाया जाता है। आइए, इसके महत्व, परंपराओं और वैष्णव धर्माचार्यों के अनुसार सात्विक पूजा- पद्धतियों पर प्रकाश डालें :- (अक्षय” का अर्थ है जो कभी नष्ट न हो। इस दिन किए गए पुण्य कर्म, दान, जप, तप और पूजा का फल अक्षय (स्थायी) माना जाता है। वैष्णव मान्यता के अनुसार, इस दिन भगवान विष्णु के परशुराम अवतार का प्राकट्य हुआ था। अतः यह दिन भगवान परशुराम की पूजा के लिए विशेष है। यह त्रेता युग के प्रारंभ का दिन भी माना जाता है, जो धर्म और सत्य की स्थापना का प्रतीक है। कुछ मान्यताओं के अनुसार, इस दिन भगवान नर-नारायण और हयग्रीव अवतार का भी प्राकट्य हुआ था। इस दिन गंगा नदी का अवतरण हुआ, जिसे वैष्णव भक्त पवित्र मानते हैं। महाभारत के अनुसार, इस दिन वेदव्यास ने महाभारत का लेखन शुरू किया और भगवान गणेश ने इसे लिखा। यह दिन सत्य, धर्म और भक्ति के प्रति समर्पण का प्रतीक है। वैष्णव धर्माचार्यों के अनुसार, यह दिन भगवान विष्णु और श्रीलक्ष्मी की कृपा प्राप्त करने का विशेष अवसर है। श्रीमद्भागवतम् और अन्य वैष्णव ग्रंथों में इस दिन की गई भक्ति को मोक्षदायी माना गया है। यह दिन भक्तों के लिए सात्विक जीवनशैली अपनाने और भौतिकता से ऊपर उठकर भगवद्भक्ति में लीन होने का अवसर है। ) परंपराएंदान-पुण्य: अक्षय तृतीया को दान का विशेष महत्व है। जल, अनाज, वस्त्र, फल, और स्वर्ण-चांदी का दान किया जाता है।वैष्णव परंपरा में गरीबों और ब्राह्मणों को भोजन, जल (जलकलश), और दक्षिणा दान करने की प्रथा है। यह दान सात्विक भाव से, बिना किसी अपेक्षा के किया जाता है।तीर्थ स्नान:गंगा, यमुना या अन्य पवित्र नदियों में स्नान का विशेष महत्व है। यह आत्मा को शुद्ध करता है। वैष्णव भक्त इस दिन तीर्थ स्थानों जैसे वृंदावन, मथुरा, द्वारका, या अयोध्या में दर्शन और स्नान करते हैं। नए कार्यों का शुभारंभ: यह दिन शुभ माना जाता है, इसलिए लोग नए व्यवसाय, विवाह, गृह प्रवेश, या अन्य महत्वपूर्ण कार्य शुरू करते हैं। वैष्णव भक्त इस दिन भगवान विष्णु का आशीर्वाद लेकर सात्विक कार्यों की शुरुआत करते हैं। व्रत और उपवास: कई वैष्णव भक्त इस दिन व्रत रखते हैं, जो भगवान विष्णु को समर्पित होता है। उपवास में सात्विक भोजन (फल, दूध, या हविष्य) ग्रहण किया जाता है, और तामसिक भोजन (लहसुन, प्याज, मांस आदि) से परहेज किया जाता है। वैष्णव धर्माचार्यों के अनुसार सात्विक पूजा और पद्धतियां- वैष्णव परंपरा में पूजा सात्विक, सरल और भक्ति-प्रधान होती है। श्री रामानुजाचार्य, श्रीमद्वल्लभाचार्य, और श्री चैतन्य महाप्रभु जैसे आचार्यों ने भगवद्भक्ति को सर्वोपरि माना है। प्रातः जल्दी उठकर स्नान करें। गंगाजल या तुलसी-पत्र डालकर स्नान करना शुभ माना जाता है।स्वच्छ वस्त्र धारण करें और घर के पूजा स्थल को साफ करें। विष्णु और लक्ष्मी पूजन: भगवान विष्णु, श्रीलक्ष्मी, और भगवान परशुराम की मूर्ति या चित्र स्थापित करें।पूजा स्थल पर दीप, धूप, और तुलसी-पत्र अर्पित करें।पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद, शक्कर) से अभिषेक करें।तुलसी-पत्र, चंदन, और फूलों से भगवान का श्रृंगार करें। सात्विक भोग (खीर, हलवा, या फल) अर्पित करें। मंत्र जप और कीर्तन: वैष्णव मंत्रों का जप करें, जैसे:ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमःॐ नमो नारायणायश्री राम तारक मंत्र: श्री राम, जय राम, जय जय रामश्री विष्णु सहस्रनाम, श्रीमद्भागवतम्, या श्रीरामचरितमानस का पाठ करें।भगवान के भजन और कीर्तन करें, जो मन को शांत और भक्ति में लीन करता है। व्रत और कथा: अक्षय तृतीया की कथा सुनें या पढ़ें, जिसमें भगवान परशुराम, नर-नारायण, या गंगा अवतरण की कथाएं शामिल हों। व्रत का संकल्प लें और दिन भर भगवान का स्मरण करें। दान और सेवा: वैष्णव धर्म में सेवा को भक्ति का आधार माना जाता है। इस दिन जरूरतमंदों को भोजन, वस्त्र, या जल दान करें। गोशाला में गायों की सेवा या तुलसी माता की पूजा करें। सात्विक जीवनशैली:इस दिन क्रोध, लोभ, और तामसिक विचारों से दूर रहें। सात्विक भोजन करें और मन को शुद्ध रखने के लिए भगवद्-चिंतन करें। वैष्णव आचार्यों के अनुसार, भक्ति में सरलता और शुद्धता सर्वोपरि है। वैष्णव धर्माचार्यों का मार्गदर्शन:- श्री रामानुजाचार्य: उन्होंने विशिष्टाद्वैत दर्शन में भगवान विष्णु की शरणागति को सर्वोच्च माना। अक्षय तृतीया को वे भक्तों को शरणागति और सेवा का उपदेश देते हैl श्री चैतन्य महाप्रभु: गौड़ीय वैष्णव परंपरा में इस दिन हरिनाम संकीर्तन और भगवान कृष्ण-राधा की भक्ति पर बल दिया जाता है। श्रीमद्वल्लभाचार्य: पुष्टिमार्ग में इस दिन भगवान को सात्विक भोग और प्रेम-भक्ति से प्रसन्न करने की प्रथा है l सात्विक दृष्टिकोण से आंतरिक शुद्धता: पूजा का बाह्य रूप तभी सार्थक है, जब मन शुद्ध और भक्ति-भाव से परिपूर्ण हो।परहित: वैष्णव धर्म में परोपकार और प्राणीमात्र की सेवा को भगवद्-भक्ति का हिस्सा माना जाता है। तुलसी और गंगा: तुलसी-पत्र और गंगाजल वैष्णव पूजा में अनिवार्य हैं, क्योंकि ये भगवान विष्णु को अत्यंत प्रिय हैं। निष्काम भक्ति: इस दिन की पूजा और दान बिना किसी स्वार्थ के, केवल भगवान की प्रसन्नता के लिए किए जाते हैं। निष्कर्ष: अक्षय तृतीया वैष्णव भक्तों के लिए भगवान विष्णु, श्रीलक्ष्मी, और उनके अवतारों की भक्ति में लीन होने का अवसर है। सात्विक पूजा, दान, और सेवा के माध्यम से भक्त न केवल आध्यात्मिक उन्नति प्राप्त करते हैं, बल्कि समाज में सकारात्मकता और धर्म का प्रसार भी करते हैं। वैषणव धर्माचार्यों का मार्गदर्शन हमें सिखाता है की सच्ची भक्ति सरलता सुद्धत्ता और प्रेम में निहित इस दिन का भगवान् का स्मरण तुलसी पूजन और हरिनाम संकीतर्न भक्त को अक्षय फल प्रद्दान करते दिनेश दास - लेखक / विचारक
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