पिता सतपाल ढांड, रंजना ढांड, साधना ढांड, अरुणा ढांड के नाम शामिल हैं इस घोटाले में।
रायपुर। ईडी द्वारा पूर्व आबकारी मंत्री कवासी लखमा को हिरासत में लेकर पूछताछ की जा रही है... पूछताछ में ईडी द्वारा पूर्व मुख्य सचिव विवेक ढांड को शराब घोटाले के सरगना के रूप में स्टेटमेंट जारी किया गया।
ईधर मंत्री कवासी लखमा ईडी के हिरासत में हैं,तो वहीं सूबे के वरिष्ठ अधिकारी विवेक ढांड पर लगातार कई तरह के मामले उजागर हो रहे हैं।
*जमीन हड़पना...*
छत्तीसगढ़ राज्य के पूर्व मुख्य सचिव और रेरा के पूर्व अध्यक्ष विवेक ढांड ने नजूल की 153000 वर्ग फिट जमीन की फ्री होल्ड में बाजार मूल्य के मात्र दो प्रतिशत मूल्य में रजिस्ट्री अपने नाम करवा ली।
इसी जमीन की फर्जी रजिस्ट्री कूट रचित दस्तावेज 1964 में पिता सतपाल ढांड वल्द गौरीशंकर ढांड के नाम से तैयार कर लिए गए थे। जिनका सत्यापन आई ए एस अधिकारी तारण प्रकाश सिन्हा ने किया। भौतिक सत्यापन निश्चित ही मूल दस्तावेज देख कर किया होगा। नजूल पट्टा रायपुर स्थित सिविल स्टेशन वार्ड की नजूल पर आवासीय उपयोग के लिए दिया गया था।
ब्लॉक नम्बर 15 प्लॉट नम्बर 17/39 का रकबा 37000 वर्ग फ़ीट है। ब्लॉक नम्बर 15 प्लॉट नम्बर 17/41,17/48,17/52,17/53 का रकबा 23750 वर्गफीट है। प्लॉट नम्बर 17/38 का रकबा 23000 वर्ग फ़ीट है।
ब्लॉक नम्बर 15 प्लॉट नम्बर 17/40 में कुल रकबा 58300 वर्गफीट का है।
ब्लॉक नम्बर 15 प्लॉट नम्बर 17/39 का रकबा 37000 वर्ग फ़ीट है। ब्लॉक नम्बर 15 प्लॉट नम्बर 17/41,17/48,17/52,17/53 का रकबा 23750 वर्गफीट है। प्लॉट नम्बर 17/38 का रकबा 23000 वर्ग फ़ीट है।
ब्लॉक नम्बर 15 प्लॉट नम्बर 17/40 में कुल रकबा 58300 वर्गफीट का है।
*शराब घोटाले के सरगना पर चला नाम...*
निदेशालय की ओर से लखमा के खिलाफ एक्शन को लेकर कहा गया कि, ED की जांच में पहले पता चला था कि अनवर ढेबर, अनिल टुटेजा और अन्य लोगों का शराब सिंडिकेट छत्तीसगढ़ राज्य में काम कर रहा था। इस घोटाले की रकम 2161 करोड़ रुपए है। जांच में पता चला है कि कवासी लखमा को शराब घोटाले से पीओसी से हर महीने कमीशन मिला है ।
2019 से 2022 के बीच चले शराब घोटाले में ED के मुताबिक ऐसे होती थी अवैध कमाई।
पार्ट-A कमीशन: सीएसएमसीएल यानी शराब की खरीद और बिक्री के लिए राज्य निकाय द्वारा उनसे खरीदी गई शराब के प्रति ‘केस’ के लिए डिस्टिलर्स से रिश्वत ली जाती थी।
पार्ट-B कच्ची शराब की बिक्री: बेहिसाब “कच्ची ऑफ-द-बुक” देशी शराब की बिक्री हुई। इस मामले में सरकारी खजाने में एक भी रुपया नहीं पहुंचा और बिक्री की सारी रकम सिंडिकेट ने हड़प ली। अवैध शराब सरकारी दुकानों से ही बेची जाती थी।
पार्ट-C कमीशन: शराब बनाने वालों से कार्टेल बनाने और बाजार में निश्चित हिस्सेदारी दिलाने के लिए रिश्वत ली जाती थी। एफएल-10ए लाइसेंस धारकों से कमीशन ली गई जिन्हें विदेशी शराब के क्षेत्र में कमाई के लिए लाया गया था।