9 लोकसभा, 14 विधानसभा! राजनीति के लिए 50 एकड़ बेची, मंदिर में रहते हैं, कौन है महाराष्ट्र का ये नेता

<strong>जालना:</strong> जब चुनाव आते हैं, तो कई लोग सोचते हैं कि उन्हें भी अपनी किस्मत आज़मानी चाहिए. कार्यकर्ता भी एक्टिव हो जाते हैं और अपने लीडर के

Oct 29, 2024 - 00:26
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9 लोकसभा, 14 विधानसभा! राजनीति के लिए 50 एकड़ बेची, मंदिर में रहते हैं, कौन है महाराष्ट्र का ये नेता
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जालना: जब चुनाव आते हैं, तो कई लोग सोचते हैं कि उन्हें भी अपनी किस्मत आज़मानी चाहिए. कार्यकर्ता भी एक्टिव हो जाते हैं और अपने लीडर के लिए ज़ोरदार कैंपेन करते हैं, लेकिन एक ऐसा शख्स है, जो चुनाव लड़ता है चाहे वो जीते या ना जीते. आज हम ऐसे ही एक शख्स के बारे में बताते हैं कि जो अब तक 9 लोकसभा चुनाव और 14 विधानसभा चुनाव लड़ चुके हैं. इस शख्स का नाम बाबासाहेब शिंदे है. वे जालना जिले के एक छोटे से गांव बापकाल के रहने वाले हैं. बता दें कि बाबासाहेब शिंदे ने राजनीति के लिए 50 एकड़ जमीन बेच दी है. बापखल गांव के एक समृद्ध परिवार में बाबासाहेब शिंदे जन्मे थे. उन्होंने अपनी पढ़ाई जालना में 10वीं तक की. उनका सपना UPSC करने का और कलेक्टर बनने का था. लेकिन, परिवार के विरोध के कारण उनका सपना अधूरा रह गया. इसके बाद उन्होंने चुनावी मैदान में कदम रखा. उन्होंने मराठवाड़ा के लिए एक स्वतंत्र राज्य की मांग भी ज़ोरदार तरीके से उठाई. 1978 में कांग्रेस ने उन्हें जालना विधानसभा सीट से टिकट ऑफर किया. हालांकि, उन्होंने इसे ठुकरा दिया और 1980 में पहली बार स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ा. तब से अब तक वे 9 लोकसभा और 14 विधानसभा चुनाव लड़ चुके हैं. इस साल वे पंद्रहवीं बार विधानसभा चुनाव के मैदान में उतर चुके हैं. चुनाव लड़ने का कारण क्या है? वे जिले के घनसवांगी विधानसभा सीट से MLA चुनाव लड़ रहे हैं. देश को आज़ाद हुए 75 साल से ज्यादा हो चुके हैं, फिर भी किसानों की समस्याएं अभी तक हल नहीं हुई हैं. शिक्षित बेरोजगारों के पास नौकरी नहीं है. कानून का सख्ती से पालन नहीं होता. देश में करप्शन बहुत बढ़ गया है. साथ ही, सरकार द्वारा घोषित योजनाएं जमीनी स्तर तक नहीं पहुंच पातीं. बाबासाहेब शिंदे ने बताया कि इन्हीं कारणों की वजह से वे चुनावी मैदान में उतरे हैं. उन्होंने राजनीति के लिए लगभग 50 एकड़ खेत की ज़मीन बेच दी है. अब वे एक छोटे से मंदिर में रहते हैं. उनके पास चुनाव लड़ने के लिए पैसे भी नहीं बचे हैं. हालांकि, चुनाव लड़ने के लिए वे अब भी इतना पैसा जमा कर ही लेते हैं. उन्होंने कहा कि वे अपनी आखिरी सांस तक चुनावी मैदान में उतरते रहेंगे और लोकतांत्रिक मूल्यों को मज़बूत करते रहेंगे.
Bhaskardoot Digital Desk www.bhaskardoot.com