पिछले एक महीने में भारतीय शेयर बाजार ने जो तेजी दिखाई है, वह कई निवेशकों के लिए चौंकाने वाली रही है. 7 अप्रैल से 6 मई के बीच शेयर बाजार ने करीब 9% की मजबूती दिखाई, और दिन के कारोबार में कभी-कभी यह उछाल 14% तक पहुंच गया. ऐसा प्रदर्शन तब देखने को मिला है जब दुनिया की बड़ी अर्थव्यवस्थाएं अभी भी ट्रेड वॉर (व्यापार युद्ध), महंगाई और स्लो ग्रोथ की चुनौतियों से जूझ रही हैं. लाइव मिंट में छपे एक लेख में जियोजित फाइनेंशियल सर्विसेज के रिसर्च हेड विनोद नायर ने इस मजबूती की वजह बताई है जिसे आप आगे पढ़ेंगे.
इस तेजी की शुरुआत 9 अप्रैल को उस वक्त हुई जब अमेरिका और कुछ देशों ने आपसी टैरिफ (आयात-निर्यात पर लगने वाला शुल्क) को कुछ समय के लिए सस्पेंड यानी निलंबित कर दिया. इस फैसले से ग्लोबल मार्केट में राहत का माहौल बना. लेकिन भारत की बात अलग थी—यह पहले से ही इन तनावों के दौरान अपेक्षाकृत स्थिर बना हुआ था.
भारत ने क्यों दिखाई खास मजबूती?
भारत की ग्रोथ का मॉडल अब भी बड़ी हद तक घरेलू खपत (domestic consumption) और सर्विस सेक्टर पर आधारित है. भारत बहुत अधिक मैन्युफैक्चरिंग एक्सपोर्ट पर निर्भर नहीं है, और टैरिफ स्ट्रक्चर (शुल्क ढांचा) भी दुनिया के मुकाबले काफी खुला है. यही वजह रही कि जब दूसरे देशों की इकोनॉमी ट्रेड टेंशन से दब रही थी, भारत का बाजार उतना प्रभावित नहीं हुआ.
इस समय भारतीय शेयर बाजार का फॉरवर्ड P/E रेशियो (यानी कंपनियों की मौजूदा कीमत बनाम उनकी भविष्य की अनुमानित कमाई) 20x तक पहुंच गया है, जो कि पिछले 7 सालों के औसत 19x से ऊपर है. इसका मतलब यह है कि निवेशक इस उम्मीद में शेयर खरीद रहे हैं कि कंपनियों की कमाई तेज़ी से बढ़ेगी.
लेकिन अभी तक के आंकड़े ऐसा नहीं दिखा रहे. मार्च तिमाही (Q4 FY24) में ज्यादातर कंपनियों का नेट प्रॉफिट 10% से भी कम बढ़ा है. और पूरे वित्त वर्ष 2025 (FY25) के लिए कंपनियों की EPS (Earnings Per Share) ग्रोथ का अनुमान केवल 5% है.