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स्टाफ की कमी, पुराने विमान, नए प्लेन्स के आने में बहुत देरी, क्या गुजरात हादसे ने खोल दी एयरलाइन इंडस्ट्री की पोल

अहमदाबाद एयरपोर्ट का दोपहर का वक्त. लंदन के गैटविक एयरपोर्ट के लिए रवाना हो रही एयर इंडिया की फ्लाइट AI-171 ने जैसे ही रनवे 23 से उड़ान भरी, अचानक कुछ ऐसा हुआ जिसने देश की एविएशन इंडस्ट्री की हकीकत सामने ला दी. टेकऑफ के ठीक बाद विमान क्रैश हो गया, और पूरे एयरपोर्ट के बाहर काले धुएं का गुबार उठने लगा. MAYDAY कॉल दी गई, लेकिन उसके बाद विमान की ओर से कोई जवाब नहीं आया.

इस दर्दनाक हादसे के बाद अब बड़ा सवाल उठ रहा है – क्या भारत की सबसे पुरानी एयरलाइन, जो आज नए विस्तार की दौड़ में सबसे आगे है, सुरक्षा से समझौता कर रही है?
AI-171 जिस विमान (B787-8 ड्रीमलाइनर) से उड़ रहा था, उसकी उम्र करीब 10 साल थी. आंकड़े बताते हैं कि एयर इंडिया के पास मौजूद विमानों की औसत उम्र करीब 16 साल है, जबकि निजी प्रतिस्पर्धी इंडिगो की औसत उम्र सिर्फ 4 साल है. हालांकि टाटा समूह ने एयर इंडिया के अधिग्रहण के बाद 470 नए विमानों का बड़ा ऑर्डर जरूर दिया है, लेकिन तब तक के लिए ये पुरानी फ्लीट ही देश-विदेश उड़ानों का बोझ उठाए हुए है. सवाल ये है – जब तकनीक पुरानी हो, मेंटेनेंस स्लो हो और डेडलाइंस टाइट हों, तब उड़ान कितनी सुरक्षित रह जाती है?

DGCA की रिपोर्ट के मुताबिक भारत को 2030 तक करीब 10,000 से ज्यादा पायलटों की जरूरत होगी. अकेली एयर इंडिया को ही लगभग 5,800 नए पायलट्स की दरकार है. लेकिन फिलहाल, जमीन पर सच्चाई ये है कि कई फ्लाइट्स को कम अनुभव वाले को-पायलट्स के साथ उड़ाया जा रहा है. इस हादसे में को-पायलट की कुल फ्लाइंग एक्सपीरियंस सिर्फ 1100 घंटे थी. जब तेजी से उड़ानें बढ़ाई जा रही हों, और उतने ही तेजी से कुशल पायलट न मिल रहे हों, तब क्या हम एक बड़े रिस्क की ओर बढ़ रहे हैं?
विस्तार की होड़, लेकिन सुरक्षा के लिए फुर्सत नहीं?
पिछले कुछ महीनों में एयर इंडिया ने ट्रांसफॉर्मेशन प्लान के तहत नई यूनिफॉर्म से लेकर इंटरनैशनल रूट्स तक बड़ा बदलाव किया है. लेकिन क्या इन बदलावों की चकाचौंध में सुरक्षा सबसे पीछे छूट गई है? DGCA ने हाल के महीनों में कई नोटिस एयरलाइंस को भेजे हैं – SOP वॉयलेशन, टेक्निकल फॉल्ट्स, थकान के बावजूद पायलट्स को ड्यूटी पर भेजना… ये सब संकेत हैं कि चीजें भीतर से उतनी मजबूत नहीं जितनी ऊपर से दिख रही हैं.

ब्रांड पर असर और बिजनेस रिस्क
हर हादसे का असर सिर्फ जान-माल तक सीमित नहीं रहता. इसका सीधा असर एयरलाइंस के इंश्योरेंस प्रीमियम, कस्टमर ट्रस्ट और लॉन्ग टर्म वैल्यू पर भी पड़ता है. टाटा ग्रुप भले ही एयर इंडिया को इंटरनैशनल ब्रांड बनाने में जुटा हो, लेकिन एक भी ऐसा हादसा उस छवि को नुकसान पहुंचा सकता है जिसकी मरम्मत सालों लग जाए.