जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में 22 अप्रैल को आतंकी हमले में हिन्दू पर्यटकों के नरसंहार के अगले ही दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में हुई कैबिनेट सुरक्षा समिति की बैठक में कई अहम निर्णय लिए गए. इन फैसलों में सबसे अहम और चर्चित निर्णय सिंधु जल संधि (Indus Waters Treaty) को निलंबित (abeyance) करना रहा. यह कदम पाकिस्तान को सबक सिखाने की दिशा में भारत की रणनीतिक पहल मानी जा रही है.
प्रधानमंत्री मोदी ने इस फैसले के बाद अपनी तमाम रैलियों के दौरान भी साफ शब्दों में कहा कि भारत अब पीछे हटने वाला नहीं है. उन्होंने कहा कि यह कदम पाकिस्तान की नींद उड़ा देने वाला है और भारत अब जवाबी रणनीति के तहत कार्य कर रहा है.
क्या भारत रातोंरात रोक सकता है पानी?
हालांकि इस फैसले के बाद एक सवाल बरकरार है कि क्या भारत रातोंरात इस फैसले को अमली जामा पहना सकता है. इसका जवाब है नहीं… विदेश मामलों की स्थायी समिति की हालिया बैठक में भारत के विदेश सचिव विक्रम मिस्री ने भी सांसदों को बताया कि यह योजना लंबे समय से तैयार की जा रही थी. जलशक्ति मंत्रालय और विदेश मंत्रालय समेत कई विभाग एक सुनियोजित रणनीति के तहत इस दिशा में काम कर रहे थे.
भारत के रास्ते में अड़ंगा डालता रहा पाक
पाकिस्तान ने इस संधि के तहत हमेशा अड़चन डालने वाला रवैया अपनाया और भारत के हित में कार्यों को रोकने का प्रयास किया. साल 1960 में हुई यह संधि उस दौर की इंजीनियरिंग तकनीकों और राजनीतिक हालात पर आधारित थी, जो आज के समय की जरूरतों के लिहाज से बहुत पीछे है. जलवायु परिवर्तन, पिघलते ग्लेशियर, बढ़ती जनसंख्या और स्वच्छ ऊर्जा की जरूरत जैसे कारणों से भारत लंबे समय से इस संधि की शर्तों पर दोबारा विचार की मांग कर रहा था.
भारत के इस कदम से पाकिस्तान की चिंता बढ़ना स्वाभाविक है. सिंधु नदी प्रणाली पर भारी निर्भरता रखने वाले इस देश के लिए यह न केवल संसाधनों की लड़ाई है, बल्कि एक मनोवैज्ञानिक युद्ध भी है. भारत अब छह नदियों के पानी पर कंट्रोल रखता है, और जल प्रवाह को नियंत्रित करने की शक्ति भारत के पास है.