विधानसभा परिसर रायपुर में अरविंद मिश्रा के परिवार द्वारा आयोजित श्रीमद्भागवत की दिव्य अमृतमयी कथा का विस्तार करते हुए शंकराचार्य आश्रम से पधारे डॉ. स्वामी इन्दुभवानन्द तीर्थ महाराज ने विवाह के शास्त्रीय पक्ष को स्पष्ट करते हुए बताया कि, विवाह ऋण मुक्ति के लिए किया जाता है, वासना पूर्ति विवाह का उद्देश्य नहीं होता है। मनुष्यों पर जन्म से ही तीन प्रकार के ऋण प्राप्त होते हैं देवताओं का ऋण ऋषियों का ऋण एवं पितरों का ऋण इन तीनों से मुक्त होने के लिए विवाह किया जाता है। विवाह से ही यज्ञ करने का एवं प्रजा तंतु के विस्तार करने का अधिकार प्राप्त होता है। विवाह में एकांकी प्रेम नहीं चलता है परस्पर प्रेम होना चाहिए। परस्पर प्रेम से ही दांपत्य जीवन सुस्थिर होता है, और सुस्थिर दांपत्य से ही धर्म का विधिवत संपादन होता है, उन्होंने भगवान श्री कृष्ण एवं रुक्मणी के विवाह की चर्चा करते हुए बताया कि जितना प्रेम भगवान श्री कृष्ण रुक्मणी से करते थे उतना ही प्रेम रुक्मणी भगवान श्री कृष्ण से करती थी जिस प्रकार रुक्मणी को रात-रात भर निद्रा नहीं आती थी वैसे ही भगवान श्री कृष्ण को भी रुक्मणी की याद में रात-रात भर निद्रा नहीं आती थी इस प्रकार हिरण्य वर्णा लक्ष्मी ने जो रुक्मिणी के रूप में अवतरित थी, भगवान श्री कृष्ण को ब्राह्मण देवता के द्वारा भेजे संदेश में अपना भाव प्रकट किया रुक्मणी साक्षात् लक्ष्मी है लक्ष्मी का विवाह श्री कृष्ण से ही हो सकता है अन्य किसी से नहीं। समुद्र भीष्मक है उसकी पुत्री लक्ष्मी स्वर्णा रुक्मणी है उसका भाई रुक्मी विष है। वह रुक्मणी एवं रुक्मिणी वल्लभ श्री कृष्ण के संबंध में बाधक है। इसके पूर्व सुधि वक्ता ने भगवान के रासलीला के रहस्य को व्यक्त किया, अक्रूर प्रसंग और कंस वध की भी चर्चा की। कथा के पूर्व कथा की यजमान प्रभाशंकर मिश्र एवं उनकी धर्मपत्नी सुलोचना मिश्र ने भागवत भगवान की पोथी का पूजन करके आरती की। शंकराचार्य आश्रम से पधारे वैदिक विद्वान महेंद्र नारायण शास्त्री ने आरती संपन्न कराई। वृंदावन की झांकियां ने श्रोताओं का मम मुग्ध कर लिया।