अमेरिका-ईरान के बीच परमाणु कार्यक्रम की दो चरण की बात हो चुकी है. पहले दौर की बातचीत ओमान में तो दूसरा दौर का रोम में संपन्न हुआ. अमेरिका ने ईरान के साथ बातचीत को सकारात्मक करार दिया है. परमाणु कार्यक्रम वार्ता को लेकर संतुष्ट दिख रहा है. अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA) के प्रमुख राफेल ग्रॉसी ने भी इसे महत्वपूर्ण कदम बताया है.
मगर, हाल ही में रायटर्स में खबर छपी जो चिंता जनक है. दावा ऐसा है कि इजरायल ईरान के परमाणु रिएक्टर पर हमला करने की तैयारी कर रहा है. इस खबर के बाद से पूरी दुनिया में हड़कंप मचा हुआ है, खासकर उन देशों में जो इस समस्या का हल कूटनीति के जरिए हल करने की वकालत करते हैं. आखिर डोनाल्ड ट्रंप और बेंजामिन नेतन्याहू मीडिल ईस्ट में क्या करना चाहते हैं? कहीं इनकी कूटनीति इस क्षेत्र में स्थिति को और जटिल बनाने की तो नहीं है? उनके कदम, न केवल मीडिल ईस्ट बल्कि वैश्विक शांति और अर्थव्यवस्था पर भी गहरा प्रभाव डाल सकता है.
दोबारा बातचीत शुरू हुआ
2015 के बाद पहली बार ईरान और अमेरिका के बीच परमाणु वार्ता शुरू हो चुका है. इस वार्ता पर अमेरिका ने 2018 में छोड़ दिया था. ट्रंप ने कहा कि एक ऐसे परमाणु समझौते को प्राथमिकता देते हैं, जो मान्यता प्राप्त हों. अगर दोनों देशों के बीच वार्ता विफल होती है, तो उन्होंने सैन्य विकल्प की बात की. हालांकि इजरायल के ईरान पर हमले के ताजा रिपोर्ट को गौर करें तो ये उनकी ही वार्ता विफल होने की सूरत में प्लानिंग हो सकती है. इधर ईरान ने भी चेतावनी दी है कि वह अपने यूरेनियम संवर्धन को हथियार-ग्रेड स्तर तक बढ़ा सकता है. यह भी साफ करता है कि दोनों पक्षों में अभी भी विश्वास की कमी है.