ट्रेन से यात्रा करने वाले यात्रियों को उस समय असमंजस्य का सामाना करना पड़ता है, जब उनका टिकट वेटिंग रह जाता है. ऐसे में उनको समझ में नहीं आता है कि सफर की तैयारी करें या न करें. क्योंकि चार्ट चार घंटे पहले बनता है. चार्ट बनने के बाद आनन फानन में तैयारी नहीं की जा सकती है. कई लोगों को दूर से ट्रेन पकड़नी पड़ती है, ऐसे में वे घर से और जल्दी निकल लेते हैं. इस परेशानी से बचने के लिए आप स्वयं टिकट बुक होते ही पता लगा सकते हैं कि कंफर्म होने की कितनी संभावना है. यहां जानें आसान तरीका.
ट्रेनों में 200 से 300 तक वेटिंग जाती है, वहीं त्यौहारी सीजन और छुट्टियों में यह आंकड़ा और बढ़ जाता है. वेटिंग 500 तक पहुंच जाती है. सामान्य तौर पर इस दौरान वेटिंग कंफर्म होने की संभावना कम रहती है, क्योंकि जो यात्री 60 दिन पहले टिकट बुक कराता है, वो बहुत ही मजबूरी में यात्रा कैंसिल करता है. लेकिन सामान्य दिनों में करीब 26 फीसदी तक वेटिंग टिकट कंफर्म होने की संभावना रहती है.
इस तरह वेटिंग होता है कंफर्म
कंफर्म टिकट लेने के बाद करीब 21 फीसदी यात्री सफर नहीं करते हैं. ऐसे यात्री टिकट कैंसिल कराते हैं. वहीं चार्ट बनने के बाद करीब पांच फीसदी यात्री सफर नहीं करते हैं, इनकी सीटें खाली रह जाती है. इस तरह सामान्य रूप से कुल वेटिंग टिकटों में से 26 फीसदी यात्री सफर नहीं करते हैं. इनके बदले वेटिंग टिकट कंफर्म होने की संभावना 26 फीसदी होती है.
आप इस तरह लगाएं पता
अपना वेटिंग नंबर देखकर इस तरह कैलकुलेट कर सकते हैं कि एक स्लीपर या थर्ड एसी कोच में 72 सीटें होती हैं, प्रति कोच औसतन वेटिंग नंबर 17 से 18 सीट तक कंफर्म होने की पूरी संभावना रहती है. यानी सामान्य दिनों में 17 से 18 टिकटों की संभावना होती है. इन यात्रियों की टिकट कंफर्म होकर आरएसी या पूरी सीट मिल सकती है.
पूरी ट्रेन का औसतन आंकड़ा ऐसे जानें
उदाहरण के लिए ज्यादातर लंबी दूरी की ट्रेनों 22 से 24 कोच होते हैं. इंजन और गार्ड कोच के अलावा चार कोच जनरल के होते हैं. इसके अलावा आठ कोच स्लीपर के होते है. इस तरह इस कोच में 75 से 80 वेटिंग तक आसानी से कंफर्म होने की संभावना होती है. अभी ट्रेन छूटने से चार घंटे पहले चार्ट तैयार होता है, लेकिन रेलवे तैयारी कर रहा है कि ट्रेन छूटने से 24 घंटे पहले चार्ट तैयार हो जाए.